मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

मेरा होंसला आफजाई करें...

मेरे प्रिय साथियों मैं बहुत दिन से अपने ब्लोग पर नहीं आया। असल में एक तो अभी अभी नई सफर की शुरूआत की थी तो उस पर ही कदम जमाने की कोशिश कर रहा था। अब ठीक-ठीक पैर जम रहे हैं तो सोचा अपने साथियों से बातचीत हो जाए। यही सोच कर आपके बीच फिर से आ गया हूं। जानता हूं हमेशा की भांति आपका साथ मिलेगा। दो-चार इधर उधर की बातें हो जाएंगी। एक बात और कहना चाहूंगा असल में बात नहीं है एक निवेदन है कि मेरे इस ब्लॉग में कुछ तकनीकी परेशानी आ रही है इस वजह से मैं अपने नए ब्लॉग अपना पंचू पर जा रहा हूं आपसे विनम्र निवेदन है कि जिस तरह आपने मेरा यहां साथ निभाया उसी तरह वहां भी मेरा हौंसला आफजाई करते रहना।
आपका मित्र
लोकेंद्र सिंह राजपूत

रविवार, 20 सितंबर 2009

वांटेड दक्षिण की पोक्किरी

जबलपुर में मुझे दो माह से ऊपर हो गया है... जब भी मन नही लगता पास ही की ज्योति टाकिज में फ़िल्म देखने चला जाता हूँ॥ इस तरह मैंने अब तक कुल जमा ज्योति टाकिज में तीन फिल्में देख ली है। पहली थी 'फॉक्स', दूसरी 'आगे से राईट' , अभी शनिवार को देखी 'वांटेड' । जिंदगी में इससे भी हाउस फुल शो देखे थे... लेकिन टिकिट कैसे ब्लैक होती है ये तो पहली बार ही देखा। ज्योति में अलग-अलग टिकिट के अलग अलग दाम है। १० रु जिसमे आपको ठीक परदे के नीचे वाली सीट पर बैठने का मौका मिलेगा। आप सर उठा कर फ़िल्म देखेंगे। साथ ही हीरो - हीरोइन को खास कर आइटम डांसर को पास से देखने का पुरा मौका। उसके बाद १५ रु, २५ रु, ३५ रु, और ५० रु की टिकटें भी होती है जैसी सुविधा वैसी टिकट। मुझे अच्छा सिस्टम लगा। हाँ तो मैंने पहली बार टिकिट ब्लैक होते देखी - १५ का २५ में। २५ का ५० में। लेकिन हमने तीन टिकिट ले ली विण्डो से 30 वाली

फ़िल्म - वांटेड, निर्देशक - प्रभुदेवा, निर्माता - बोनी कपूर
कलाकार - सलमान खान, आयशा टाकिया, प्रकाश राज , महेश मांजरेकर और अन्य

फ़िल्म की स्टार्टिंग मार-काट से होती है और मार-काट पर ही ख़त्म। फ़िल्म की स्टोरी पुराने स्टाइल की है जिसमे एक पुलिस वाला होता है जो अंडरवर्ल्ड का खत्म करने के लिए एक गुंडे के रूप में उनके गैंग में शामिल होता है... और फ़िर सबको मरना शुरू कर देता है। राधे(सलमान) गुंडे के रूप में ऐसा करता है। अकेले ही बन्दूक धारी गुंडों को चुटकी में मसल देता है... फ़िल्म देख कर ऐसा लगता है जैसे की हम कोई दक्षिण की फ़िल्म देख रहे हो। बाद में पता चला की ये दक्षिण की ब्लाकबस्टर फ़िल्म पोक्किरी का हिन्दी रूपांतरण है। आयशा टाकिया ने मिडिल क्लास की लड़की का रोल प्ले किया है, जिसे राधे से प्यार हो जाता है। वो जानती है की राधे गुंडा है लेकिन लोगो की मदद भी करता है। पर वो सोचती है की उसका प्यार राधे को बदल देगा। कहानी के अंत में पता चलता है राधे पुलिस ऑफिसर है। फ़िल्म में महेश मांजरेकर ने धूर्त पुलिस वाले का रोल बखूबी निभाया है...

कहानी भले ही पुरनी थी लेकिन मनोरंजन को प्रमुखता देने वाले प्रभुदेवा ने कहीं भी कहानी में उबाऊपण नही आने दिया। सलमान हीरो था तो निश्चित बात थी की थोडी बहुत तो फ़िल्म में टपोरी गिरी होगी उस तरह के संवाद भी होने सो थे और फ़िर शर्ट भी उतारी, सलमान ने अपना बदन भी खूब दिखाया .... फ़िल्म ठीक थी, पैसा बसूल। लेकिन मार-काट की अधिकता के चलते मल्टीप्लेक्स के दर्शकों को शायद न खींच पाए। फिलहाल तो रेस्पोंसे अच्छा है... सिंगल स्क्रीन थियेटर में खूब भीड़ लग रही है... टिकिट ब्लैक भी हो रही है.... वैसे सलमान को एक अदद हित फ़िल्म की जरुरत थी और बोनी कपूर को पैसे बनने थे सो बना लिए। फ़िल्म का संगीत पक्ष बेहद कमजोर है.... कोई भी गाना जुबान पर नही चढा। शुरू के एक गाने में अनिल कपूर, गोविंदा और ख़ुद प्रभू देवा ने डांस किया।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

तालिबानी सोच का शिकार हो रहे है हिंदू, पाकिस्तान में

सारा जगत है सोया हुआ.....
सारे मानवाधिकारी छुपे बैठे है बिलों में.... या फ़िर लगे है अत्याचारियों को बचाने में....
१९४७-४८ में पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या १६% से २०% तक थी। यह मैं नही कह रहा ये पाकिस्तान की जन-गणना के आंकडे बताते है... लेकिन हिन्दुओ पर इन ६३ सालों में पाकिस्तान में इतने जुल्म ढाये गए की उन्हें या तो वहां से भाग कर अपनी जान और अपने परिजनों की जान बचानी पड़ी या फिर मौत को गले लगाना पड़ा... एक और रास्ता चुनना पड़ता था उसे पाकिस्तान के कठमुल्ले जबरन थोपते थे... इस्लाम। हिदुओं को जबरन मुस्लिम बनाया जाता... वहां इन सब जुल्मों के चलते हालात ये हो गयी है की पाकिस्तान में हिन्दुओ की जनसँख्या घटकर १.६% से भी कम रह गयी है.... वहां हिन्दुओं को अपनी सम्पति छोड़ कर भागना पड़ा है... अपनी बहु- बेटिओं की इज्जत खोनी पड़ी है.... पर इस पर दुनिया में तो क्या भारत में भी कोई हल्ला नहीं बोलेगा... हाल के वर्षों में वहां क्या कुछ हुआ है जरा नीचे पढें साथ ही मेरा पुराना लेख कोई तो सुने इनकी पुकार को भी पढ़ें ............
पिछले चार सालों में पाकिस्तान से करीब 5 हजार हिंदू तालिबान के डर कर भारत आ गए, कभी वापस न जाने के लिए। अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर, यहां तक की अपना परिवार तक छोड़कर, आना आसान नहीं है। लेकिन इन लोगों का कहना है कि उनके पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। 2006 में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है भारत में बाड़मेर के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में 392 हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। 2007 में यह आंकड़ा बढ़कर 880 हो गया। पिछले साल कुल 1240 पाकिस्तानी हिंदू भारत जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं गए हैं। वह इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की अवधि बढ़ा रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि यह आंकड़े आधिकारिक हैं, जबकि सूत्रों का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या कहीं अधिक है जो पाकिस्तान से यहां आए और स्थानीय लोगों में मिल कर अब स्थानीय निवासी बन कर रह रहे हैं। अधिकारियों का इन विस्थापितों के प्रति नरम व्यवहार है क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग पाकिस्तान में भयावह स्थिति से गुजरे हैं। वह दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाते हैं।
इन्हें भी पढ़ें
रेलवे स्टेशन के इमिग्रेशन ऑफिसर हेतुदन चरण का कहना है, 'भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या अचानक बढ़ गई है। हर हफ्ते 15-16 परिवार यहां आ रहे हैं। लेकिन इनमें से कोई भी यह स्वीकार नहीं करता कि वह यहां बसने के इरादे से आए हैं। लेकिन आप उनका सामान देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह शायद अब वापस नहीं लौटेंगे।' राना राम पाकिस्तान के पंजाब में स्थित रहीमयार जिले में अपने परिवार के साथ रहता था। अपनी कहानी सुनाते हुए उसने कहा- वह तालिबान के कब्जे में था। उसकी बीवी को तालिबान ने अगवा कर लिया। उसके साथ रेप किया और उसे जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया। इतना ही नहीं, उसकी दोनों बेटियों को भी इस्लाम कबूल करवाया। यहां तक की जान जाने के डर से उसने भी इस्लाम कबूल कर लिया। इसके बाद उसने वहां से भागना ही बेहतर समझा और वह अपनी दोनों बेटियों के साथ भारत भाग आया। उसकी पत्नी का अभी तक कोई अता पता नहीं है। एक और विस्थापित डूंगाराम ने कहा- पिछले दो सालों में हिंदुओं के साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं खासकर परवेज़ मुशर्रफ के जाने के बाद। अब कट्टरपंथी काफी सक्रिय हो गए हैं... हम लोगों को तब स्थायी नौकरी नहीं दी जाती थी, जब तक हम इस्लाम कबूल न कर लें। बाड़मेर और जैसलमेर में शरणार्थियों के लिए काम करने वाले सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं- भारत में शरणार्थियों के लिए कोई पॉलिसी नहीं है। यही कारण है कि पाकिस्तान से भारी संख्या में लोग भारत आ रहे हैं। सोढ़ा ने कहा- पाकिस्तान के साथ बातचीत में भारत सरकार शायद ही कभी पाकिस्तान में हिदुंओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार व अत्याचार का मुद्दा नहीं उठाती है। उन्होंने कहा- 2004-05 में 135 शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन बाकी लोग अभी भी अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। यहां पुलिस इन लोगों पर अत्याचार करती है। उन्होंने कहा- पाकिस्तान के मीरपुर खास शहर में दिसंबर 2008 में करीब 200 हिदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया। बहुत से लोग ऐसे हैं जो हिंदू धर्म नहीं छोड़ना चाहते लेकिन वहां उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं।

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

तू चीन रख ले मुझे पाकिस्तान देदे यार...



शीर्षक पड़ कर आप चौक गए होंगे है न .... चौकना भी लाज़मी है अब तक लोग भारत के हिस्सों की ही मांग कर रहे थे॥ ये कौन आ गए जो धूर्त चीन और कपटी पकिस्तान को ही मांगे जा रहे है... है भाई कुछ लोग है जो रोज ऐसा करते है, पर उसके पीछे चीनी मानसिकता और पाकिस्तानी सोच नही होती। जब भी आपको मौका मिले तो शाम के वक्त ठीक ठीक वक्त बताऊँ तो ९ बजे.... हाँ ठीक ९ बजे के आस पास किसी भी अखबार के दफ्तर में आप चले आईये। पेज लगते वक्त बातचीत का जो दौर बेहद रोचक होता है। लेकिन सिर्फ़ शान्ति से बैठकर सुनने वाले के लिए वहां काम करने वाले पत्रकार के लिए तो वो समय युद्घ के मैदान की तरह होता है... क्योकि उस वक्त उसका पूरा ध्यान काम पर होता है उसे डेडलाइन से पहले अपनी जिमेदारी पूरी करने होती है तो उसका ध्यान तो इस तरह की मजेदार बातचीत पर कम ही जा पता है... हाँ किसी को मजे लेने हो तो वो उस वक्त वहां पहुँच कर खूब मजे ले सकता है... भागती जिंदगी के बीच कुछ क्षण हंस सकता है... उन पलों में किस तरह की बातचीत होती है उसके कुछ नमूने देखिये.......

१- अरे यार पूरा पाकिस्तान तू लेगा क्या कुछ मुझे भी दे दे। अच्छा एक काम कर तू मुझे चीन और श्रीलंका ही देदे । (कुछ मेरे पेज पर भी जाने दे भाई...)

२- मनकू जी जरा १३ (पेज नंबर) से अफगानिस्तान को ८ पर पटक दे...
3- भाई ये सोनिया और मनमोहन को एक ही बॉक्स में लगा दे॥ फिर ठीक लगेगा।
४- और हाँ सुन... ये बाबा और सेलिना जेटली को सिंगल सिंगल लेकिन पास पास मत लगाना..
५- उर्जा मंत्री ज्यादा फ़ैल रहा है... इसे नीचे से काट के साइड में लगा न यार....
६- क्या कर रहा है तू भी न... राहुल बाबा को कहाँ गुसेड दिया जरा उसे फ्रंट पर ला...
७- जल्दी कर भाई राजधानी में ही लटका रहेगा क्या? राजधानी जल्दी से छोड़ कर बालाघाट को पकड़... बालाघाट को निपटा कर जरा ग्वालियर को भी देख लेना......

८- उसको फोन लगा के पूछो अभी तक सतना क्यों नहीं आया....
इस तरह की बातो में फ्री बैठ कर सुनने वाले को बड़ा आनद आता है... मैं भी रोज सुनता रहा पर कभी ध्यान नहीं गया... मेरा ध्यान भी उस दिन गया जब मैं निठल्ला बैठा.... उस दिन ही मैंने सोचा क्यों न इस मजेदार तथ्य से अपने मित्रो को परिचय करों... अगर समय हो तो कभी सुनना..... फिर महसूस करना.... डेस्क पर बैठे बैठे ही देश-विदेश की उठापटक हो जाती है... सारे नेताओ की खींचातानी भी..... जिसको काटना पीटना होता है... बड़ा छोटा करना होता है उसे भी बड़ा छोटा कर देते है.... ये तो कुछ एक नमूने थे घटते तो इससे भी अधिक रोचक है....

शनिवार, 1 अगस्त 2009

नहीं होता मुसलमानों के साथ भेदभाव

मुंबई की एक सोसायटी में मुसलमान होने के कारण मकान न मिलने का आरोप लगाने के बाद इमरान हाशमी अलग-थलग पड़ गए हैं। सिल्वर स्क्रीन के सीरियल किसर इमरान हाशमी को मुंबई में सोसाइटी में घर नहीं मिल रहा है। इमरान का आरोप है कि वह मुस्लिम हैं इस नाते उन्हें सोसाइटी में कोई घर बेचने को तैयार नहीं है। लेकिन इसके पीछे इमरान हाशमी जो वजह बता रहे हैं वह बेहद गंभीर है। इमरान हाशमी जब पाली हिल के नजदीक निबाना कोऑपरेटिव सोसाइटी में घर की तलाश में पहुंचे तो वहां के पदाधिकारियों ने कहा कि आप कहीं और देख लें। इमरान मानते हैं कि सोसाइटी उन्हें घर बेचने के लिए सिर्फ इसलिए राजी नहीं है क्योंकि वह मुस्लिम हैं। लेकिन इंडस्ट्री के ही अन्य मुस्लिम कलाकार उन्हें गलत ठहरा रहे हैं। सलमान खान, आमिर खान और रजा मुराद के बाद शाहरुख खान ने भी धर्म के आधार पर किसी भेदभाव से इनकार किया है। एक कार्यक्रम के सिलसिले में शनिवार को दिल्ली आए शाहरुख खान पहले तो इस मुद्दे पर जवाब देने से बचते रहे, लेकिन बार-बार यह सवाल उठने पर उन्होंने कहा, 'मैं धर्मनिरपेक्षता का जीता-जागता उदाहरण हूं। मेरे माता-पिता मुस्लिम थे और पत्नी हिंदू हैं। दूसरे धर्म में शादी करने के बावजूद मुझ पर कभी उंगली नहीं उठाई गई। मेरे धर्म गुरुओं ने मुझे कभी नहीं बताया कि ऐसा करने पर मुस्लिम धर्म में मेरी क्या जगह है? यह मुद्दा मुझे कभी परेशान नहीं करता। चाहे दिल्ली में बिताया गया वक्त हो या इंडस्ट्री में गुजारे 20 साल, मैंने धर्म के कारण भेदभाव कभी नहीं झेला।'
शाहरुख़ खान का मानना है कि अगर कहीं ऐसी इक्का-दुक्का घटना होती भी है, तो उसे मीडिया में तूल नहीं देना चाहिए। इससे अन्य देशों में भारत की छवि खराब होती है और वे भारत को बंटा हुआ देखते हैं, जबकि हकीकत इसके उलट है।