सोमवार, 16 मार्च 2009

मैंने फिर से देखा ग्वालियर का किला


यूं तो मैंने ग्वालियर का किला कई बार देखा था। पर कल की बात ही अगल थी। कल जो देखा था, वो अभी तक नहीं देखा था। किले को यूं देखने का अंदाज भी कहाँ था, इससे पहले। फिर आज साथ मे भी तो गजब के लोग थे। एक तो हमारे आदरणीय शिक्षक श्री जयंत तोमर जिनके साथ किला-दर्शन का कार्यक्रम लगभग ड़ेढ साल से टल रहा था। जब मैंने जीवाजी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में पत्रकारिता के गुर सीखने के लिए दाखिला लिया। आज ये दिली तमन्ना भी पूरी हो गयी। गुरू माँ श्रीमति नीलम तोमर का भी तो स्नेही सानिंध्य मिला था और फिर साथ में मनमौजी मित्रो की टोली भी तो थी। तो भैया मजे तो आने ही थे। अब तो हम लोगो का दिमाग पत्रकारिता वाला भी हो गया है सो जानकारी भी समेटना था। तो शाम तक समेटी भी। अब आगे चलते हैं................
सबसे पहले हमने देखा मानमंदिर महल, जिसका निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया। राजा मानसिंह को एक ओर वजह से दुनिया में पहचाना जाता है संगीत के क्षेत्र में। उन्हें ध्रुपद गायन का जनक माना जाता है। इतिहास की बाते ज्यादा नहीं करूंगा। इस पर यहीं ब्रेक लगाते हैं। मान मंदिर में चमगादड़ो की संख्या ठीक उसी तरह बढ़ रही है जिस तरह भारत की जनसंख्या। महल की दीवालों को चमगादडो की लघुशंका-दीर्घशंका से बचाने के लिए छत पर लोहे के जाल लगा दिए हैं। उन जालों पर चमगादड़ अपने चिरपरिचित अंदाज में उल्टे लटके रहते हैं। यहां नक्काशी, रंग-रोगन, रानी झूलाझगृह, फांसीघर, केशर कुंड और टेलीफोन देखा और खूब फोटो खींचे। टेलीफोन - संभवत: एक महल से दूसरे महल में बात करने के लिए पोल। यहाँ से निकल कर 80-81 खम्बो पर बनी छतरी में बैठकर भोजन किया। होली पर बनाई हुई मिठाई भी सब घर से लाए थे। यहां भोजन करते समय बाजीराव भोजन की याद आ गई। बाजीराव भोजन- जब सैनिक लम्बी दूरी पर युद्धों के लिए निकलते थे तो रास्ते में घोडों पर बैठकर ही खाना खाया करते थे। हाथ में रोटी, गुड़-साग लेकर। लेकिन हमने यहां घोडो पर बैठकर खाना नहीं खाया। पेट भर गया हो तो चलें.............
मान मंदिर के सामने बने छोटे-छोटे महलों की ओर। सबकी दुर्दशा देख कर तो बुरा लगा। जर्जर हालात। क्या हो रहा है? हमारी ऐतिहासिक धरोहरों के रख-रखाव की कैसी व्यवस्था है? तरह-तरह के क्रोधित प्रश्र मन में कौंधने लगे। हम इन महलों की ऊंची-ऊंची छतों पर गये। वहां से अपने प्यारे शहर का खूबसूरत नजारा देखते ही बनता था। छोटे खिलौनों से मकान डिब्बे-डिब्बेनुमा, सडक़ें उलझे हुए काले धागों की तरह, हरियाली तो यूं गाहब सी दिखी जैसे शहर से रूठ कर कहीं चली गई हो। जैसे कवि पत्नि अपने पति की बोंरिग कवितायों से उकता कर रूठ कर मायके चली गई हो। उफ! ये गर्मी। सब गर्मी से परेशान। बादलों ने देखा बच्चे परेशान हो रहे हैं गर्मी से, तुरंत गए, न जाने कहां से पानी भर लाए और सूरज दादा को ओट में ले कर शुरू हो गए। अभी तक उफ..! गर्मी थी अब आहा.. क्या मौसम आया है। चलो अब और आगे चलते हैं।
जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल। समझे गुरूद्वारे आ गए हैं। दाता बंदी छोड़ गुरूद्वारा। गुरूग्रंथ साहिब और महान आत्मा गुरू हरगोविन्द सिंह को मत्था टेका। सिक्ख सम्प्रदाय ने सदैब ही भारत और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया है और सदैव इस हेतु वह सदैव आगे रहा है। गुरू हरगोविन्द साहब को जब मुगल बादशाह ने रिया करने के लिए आदेश जारी किया तो गुरू साहिब ने कह दिया मैं अकेला कैद से मुक्त नहीं होना चाहता। तब गुरू गोविन्द जी का दामन पकड़ कर 51 अन्य राजा कैद से मुक्त हुए थे।
अब आते हैं सास-बहू के मंदिर पर। एकता कपूर के धारावाहिक की सास-बहू नहींं। सास-बहू तो अपभ्रंस है, असली नाम है सहस्त्रबाहू का मंदिर। खूबसूरत दो मंदिरों का जोडा। जिन्हें देखे बिना शायद ही किले से कोई पर्यटक वापस जाता होगा।
अब तक जो मैंने नहीं देखा था- लाइट एण्ड साउण्ड शो। इसके बारे मैं सुनता तो अक्सर था पर कल प्रत्यक्ष देखा-सुना। शो के प्रांरभ होने का हम बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। इस बीच रात्री में किले से ग्वालियर का जो नजारा देखा तो देखता ही रह गया। कृत्रिम प्रकाश में झिलमिलाता मेरा शहर कितना खूबसूरत लग रहा था। बिलकुल नई दुल्हन की साड़ी की तरह, जिस पर हजारों चमचमाते सितारें जडे होते हैं। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की जादू भरी आवाज के साथ हमारी इंतजार की घडियाँ समाप्त हुई। गवालियर किले का इतिहास पूरे किले पर गूंजने लगा। क्या गजब की लाइटिंग हो रही थी, किले का अलग ही रूप-रंग निखर कर सामने आ रहा था। सांउड का क्या कहूँ? इस अनुभव को में शब्दों में बांधने में, मैं खुद को असमर्थ पा रहा हूँ। मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। इसके लिए तो आपको ग्वालियर किले पर ही आना पडेगा। इस कार्यक्रम ने दिन भर की थकान भुला दी। घर लौटते में सोच रहा था कितना खूबसूरत है किला........


6 टिप्‍पणियां:

www.जीवन के अनुभव ने कहा…

tumane to sach mai gwalior kile ke saundary se sabako baadh hi diya hai kya khub likha hai. ab to aapke blog ka pathak gwalior kila dekhane ko utsuk ho hi jaayega.

दिल दुखता है... ने कहा…

धन्यवाद निहारिका जी.. चलो इस बहाने उन प्रिय मित्रो से मुलाकात भी हो जायेगी ... और फिर से उनके साथ किला देख लेंगे.... है.. कि नहीं. एक बार फिर से आपका धन्यवाद.

Arvind Singh Sikarwar "AZAD" ने कहा…

vande matram ji kaise hain ?
arvind singh from youth for equality


aapke varnan karne ka andaaz bahut achaa hai ab akhin jao to hame bhi yaad kar lena

दिल दुखता है... ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

thanks

Unknown ने कहा…

Nice